Teacher Details
Mahesh Raghunath Dawange
Department of Hindi
mdawange200@gmail.com
1) | दवंगे, महेश (2022). समीक्षा : ‘ओह रे! किसान’ की यात्रा से गुजरते हुए. अपनी माटी,
41,
ISSN(print/online): 2322-0724,
URL/DOI: https://www.apnimaati.com/2022/06/blog-post_60.html
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2) | दवंगे, महेश (2020). माना कि अँधेरा घना है, पर दिया जलाना कहां माना है . जागल्या,
3 .
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3) | दवंगे, महेश (2020). समीक्षा : तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी..... अपनी माटी,
३३,
ISSN(print/online): 2322-0724,
URL/DOI: https://www.apnimaati.com/2020/10/blog-post_22.html
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4) | दवंगे, महेश (2019). क्या आपके भीतर भी छिपा है कोई 'आदमखोर'. समीचीन पत्रिका,
12 (22), 100-107.
ISSN(print/online): 2250-2335.
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5) | दवंगे, महेश (2019). हमारी भी सुनो . शोध संदर्श,
23 (07), 333-338 .
ISSN(print/online): 2319-5908.
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6) | दवंगे, महेश (2019). सोशल मीडिया और राजनीति . शब्दसृष्टी,
07 (07), 31 -33 .
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7) | दवंगे, महेश (2019). 'धीमी धीमी आंच' की अनूठी दुनिया . शोध श्री,
३३ (४), ५०-५६.
ISSN(print/online): 2277-5587.
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8) | दवंगे, महेश (2019). फ़ांस की ओर बढ़ते कदम . शोध धारा,
4 (55), 53-59 .
ISSN(print/online): 0975-3664.
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9) | दवंगे, महेश (2018). स्त्री विमर्श की दहलीज को लाँघता हिंदी महिला लेखन . युध्यरत आम आदमी,
ISSN(print/online): 2320-0359.
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10) | दवंगे, महेश (2018). तीसरी दुनिया का यथार्थ . शोध दिशा,
४३ (४३), २४४-२४८.
ISSN(print/online): 0975-735X,
URL/DOI: http://kavitakosh.org/kk/otherapps/sajha-manch/?m=0B4Y8h_F9o-nVRXhLa1IwVWVVQnFOcUg0MGowVGYzZDhCbzdV&patrika=shodhank
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11) | दवंगे, महेश (2018). अपनी हरियाली की स्मृति में दम तोड़ते किसान . धारा और धारणा,
(03 ), 76 -83 .
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12) | दवंगे, महेश (2017). क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले. दलित अस्मिता,
ISSN(print/online): 2278-8077.
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13) | दवंगे, महेश (2017). बेगुनाही की सजा कब तक . युध्यरत आम आदमी,
ISSN(print/online): 2320-0359.
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14) | दवंगे, महेश (2017). नहीं हूँ किसी का भी प्रिय कवि मै . युगांतर,
ISSN(print/online): 2320-2467.
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15) | दवंगे, महेश (2016). वॉरेन हेस्टिंग्स का साँड: एक मूल्यांकन. अनुराग सरिता,
ISSN(print/online): 2229-3000.
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16) | दवंगे, महेश (2014). स्वतंत्र अस्तित्व की पहचान: शाल्मली. संकल्य,
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17) | दवंगे, महेश (2012). 'बुतखाना' कहानी संग्रह में सामाजिक संवेदना. संकल्य,
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18) | दवंगे, महेश (2011). नागार्जुन के साहित्य में जनवादी चेतना. राष्ट्रवाणी,
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